शुद्घ का युद्घ अभियान : जानकारी छुपाने वाले तीन अफसरों की होगी विभागीय जांच, राज्य सूचना आयोग ने दिया आदेश

भोपाल। मध्यप्रदेश में पंद्रह महीने की कांग्रेस सरकार के समय चलाए गए शुद्घ का युद्घ अभियान का तीन अफसर शिकार हो गए हैं। राज्य सूचना आयोग के आदेश के बावजूद सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी तीनों अफसरों ने नहीं दी थी।
आदेश का पालन नहीं करने के लिए आयोग ने तीनों अफसरों की विभागीय जांच करने का आदेश दिया है। आयोग के इस फैसले से विभाग में हड़कंप मच गया है। साल 2018 के अंत में हुए विधानसभा चुनाव के बाद कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार बनी थी। पंद्रह महीने तक चली सरकार ने मिलावट खोरों पर शिकंजा कसने के लिए शुद्घ का युद्घ अभियान शुरू किया था।
अभियान के तहत खाद्य एवं औषधि प्रशासन के अधिकारी दवाइयों और खाद्य सामग्री के सेंपल लेते थे और उसे जांच के लिए लैब भेजते थे। आरटीआई कार्यकर्ता नितिन सक्सेना ने इस अभियान के दौरान लिए गए सेंपल और उसकी रिपोर्ट को लेकर सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी मांगी थी। यह जानकारी 2020 में मांगी गई थी। एक महीने तक जानकारी नहीं मिलने के बाद प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष अर्जी दाखिल की गई थी।
प्रथम अपीलय अधिकारी ने मातहतों को तय समय सीमा में जानकारी उपलब्ध कराने का आदेश दिया था। उसके बाद भोपाल जिले के अधिकारी राज्य मुख्यालय और मुख्यालय के अधिकारी जिला कार्यालय के नाम पर टालते रहे, लेकिन जानकारी नहीं दी। उसके बाद मामले की अपील राज्य सूचना आयोग में की गई थी। मामले की सुनवाई खुद राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त एके शुक्ला ने की थी।
उन्होंने मध्यप्रदेश के खाद्य एवं औषधि प्रशासन के अफसरों को जानकारी देने का आदेश दिया था। यह आदेश साल 2020 में दिया गया था। शुक्ला ने कहा, पूरे तथ्य सक्सेना को दिखाए जाएं और जो जानकारी चाहिए, वह उन्हें नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाए। सूचना आयोग के आदेश के बावजूद सक्सेना को जानकारी नहीं दी गई। लिहाजा सक्सेना ने 2023 में फिर से मामले की अपील आयोग में की थी। उसके बाद आयोग ने चार अफसरों को नोटिस जारी किया था। इसमें रजनीश चौधरी, देवेंद्र दुबे, तबस्सुम मेरोठा और अरुणेश पटेल शामिल हैं। चौधरी खाद्य एवं औषधित प्रशासन राज्य मुख्यालय में सूचना अधिकारी थे।
दुबे भोपाल जिले में विभाग की खाद्य शाखा और मेरोठा औषधि शाखा की लोक सूचना अधिकारी थीं। पटेल संयुक्त नियंत्रक थे। पटेल ने आयोग को भेजे गए अपने जवाब में कहा कि आयोग का आदेश मिलने के कुछ दिन में मेरा तबादला सीहोर में उप संचालक के पद पर हो गया था, इसलिए जानकारी देने वाली जिम्मेदारी मेरे पास नहीं थी। तीन अन्य अफसरों ने सीधा कोई जवाब नहीं दिया। आयोग ने पटेल के जवाब को तर्कसंगत माना है। आयोग ने कहा कि तीन अन्य अफसरों का जवाब समाधानकारक नहीं है। लिहाजा तीनों अफसरों के खिलाफ अधिनियम की धारा-20 के तहत (विभागीय जांच) कार्रवाई की जाए।
…इसलिए नहीं दी जानकारी
सूत्र बताते हैं कि शुद्घ का युद्घ अभियान कांग्रेस सरकार के समय चला था। आरटीआई के तहत जानकारी सत्ता परिवर्तन के बाद मांगी गई थी। जिन स्थानों से खाद्य और औषधि के सेंपल लिए गए थे, उनमें से ज्यादातर भाजपा से जुड़े थे और अफसरों पर कार्रवाई नहीं करने का दबाव था। अगर उस समय की जानकारी सूचना के अधिकार के तहत बाहर आती, तो अफसरों को संबंधित के खिलाफ कार्रवाई करना पड़ती। इसी दबाव के चलते अफसरों ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी नहीं दी थी।