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आदिवासी कोटे से नौकरी लेकर धर्मांतरण करने वालों के खिलाफ समाज लामबंद, भोपाल में गर्जना रैली

भोपाल के भेल दशहरा मैदान में जनजातिय समुदाय ने जनजातीय सुरक्षा मंच के आह्वान पर रैली निकाली है.

लोगों ने भेल दशहरा मैदान में हुंकार भरी. जनजातीय सुरक्षा मंच के आह्वान पर प्रदेश के हर जिले से आदिवासी समुदाय के लोग इकट्ठे हुए.. उनकी मांग है कि जो लोग आदिवासी कोटे से लाभ लेकर नौकरी पाने के बाद दूसरे धर्म को अपना रहे हैं. ऐसे लोगों को आरक्षण सुविधा से बाहर किया जाए. उनसे सारे लाभ और सुविधाएं वापिस ली जाएं

राजधानी भोपाल में डिलिस्टिंग बिल जैसे अहम मुद्दे को लेकर अब प्रदेश भर का अनुसूचित जनजाति समाज आंदोलन कर रहा है. जनजाति सुरक्षा मंच का कहना है ऐसे लोग जो आदिवासी समाज की रूढि परंपराओं, प्रकृति प्रेम और पूजा पद्धित को छोड़ चुके हैं. उन्हे लाभों से दूर किया जाए. ऐसे लोगों को सूची बनाकर अनुच्छेद 342 के तहत डीलिस्टिंग किया जाए. इसके लिए सदन में विधेयक लाया जाए. जिससे  आदिवासियों के अधिकारों और लाभ पर हो रहे अतिक्रमण को रोका जा सकें.

सदन में डीलिस्टिंग को लेकर लाएं विधेयक
मध्य क्षेत्र के प्रदेश संयोजक कालू सिंह मुजाल्दा ने आदिवासी कोटे से लाभ लेकर दूसरे धर्म को अपनाने वालों को हटाने की मांग की है. ज्यादातर जिलों में लोग आदिवासी कोटे से नौकरी ले रहे हैं. आरक्षण का लाभ ले रहे हैं. लाभ मिलने के बाद आदिवासियों की पूजा, पद्धित परंपराओं को पालन नहीं करते हैं. ऐसे लोगों को लिस्टिंग कर हटाया जाएगा. इसके लिए ऐसे लोगों को चिन्हित भी किया जा रहा है. जो अब प्रकृति प्रेम या पुरानी परंपराओं से जुड़े नहीं हैं उनकी डिलिस्टिंग की जाएगी. मुजाल्दा का कहना है इसके लिए पीएम मोदी और राष्ट्रपति से निवेदन है कि वो सदन में डीलिस्टिंग के लिए विधेयक लेकर आएं. डीलिस्टिंग ना होने तक गर्जना महारैली जारी रहेगी.

गर्जना रैली में उमड़ा जनजाति समुदाय का जनसैलाब
राजधानी भोपाल के बीएचईएल के दशहरा मैदान में हजारों की तादाद में जनजातीय समुदाय के लोग इकट्ठा हुए हैं. कड़ी धूप में खुले मैदान में हर जिले से आए लोगों ने डीलिस्टिंग की मांग को लेकर गर्जना भरी है. गर्जना महारैली में प्रांतीय संयोजक ने न्यूज 18 को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 342 में मतांतरित लोगों को जनजातीय आरक्षण के लाभ से बाहर करने के लिए देश की संसद में अब तक कोई कानून नहीं बना है. इसके साथ ही अब तक इसमें संशोधन के लिए प्रस्ताव पर ही विचार किया गया है. मसौदा 1970 के दशक से संसद में ही विचाराधीन है. दूसरे धर्म को अपना लेने के बाद जनजाति का सदस्य भारतीय क्रिश्चियन कहलाता है. इसके बाद कानूनन वह अल्पसंख्यक की श्रेणी में आ जाता है. संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 में कोई स्पष्ट प्रविधान नहीं है. इसलिए धर्म परिवर्तन करने के बाद लोग दोहरी सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं. धर्मातरण के लिए बड़ी संख्या में ग्रामीण इलाकों में सक्रिय हो रहे हैं. डीलिस्टिंग को लेकर अब गर्जना महारैली के तहत धर्मांतरित हो चुके लोगों को हटाने की मांग है.

आखिर क्या है डीलिस्टिंग
डीलिस्टिंग शब्द को अब विशेष लोगों के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है. वे लोग जो आदिवासी समाज की मूल पहचान और प्रकृति प्रेम को छोड़ कर दूसरे धर्म के अपना कर चले गए हैं. वे जनजाति समाज की रूढ़ि परंपराओं को नहीं मानते हैं. आदिवासी अधिकारों का अतिक्रमण करते हैं. वे संख्या कम होते हुए भी जनजातीय समाज की पूरी संख्या को मिलने वाले सभी लाभों पर अतिक्रमण करते हैं. अब आदिवासी समाज की संख्या को दिखाकर आदिवासियों के हितों पर अतिक्रमण ना किया जाए. ऐसे लोगों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर यानि डी लिस्ट किया जाए. इसकी मांग की जा रही है.

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