कई अस्पतालों में वाटर हाइड्रेंट सिस्टम के लिए टैंकों में पर्याप्त पानी का इंतजाम नहीं। बड़ा सवाल, फिर कैसे मिल गई फायर एनओसी।

भोपाल । जबलपुर के एक निजी अस्पताल में आग लगने से 10 मरीजों की मौत के बाद भोपाल में भी निजी और सरकारी अस्पतालों की जांच की जा रही है। इसमें अस्पतालों की बड़ी लापरवाही सामने आई है। अभी तक शहर के करीब 80 अस्पतालों की जांच पूरी हो गई है। इनमें करीब 40 प्रतिशत अस्पतालों में आपातकालीन द्वार ही नहीं हैं। दूसरी बड़ी खामी यह है कि ज्यादातर अस्पतालों में रैंप ही नहीं हैं। ऐसे में अगर अस्पताल में आग लगती है तो मरीजों को ऊपरी मंजिलों से नीचे लाने या आपातकालीन द्वार से बाहर निकालने के लिए का कोई तरीका नहीं रहेगा। वजह, आग के दौरान बिजली कट होने से लिफ्ट बंद हो जाती है। सीढ़ियों से मरीजों को लेकर आना-जाना मुश्किल होता है। अब बड़ा सवाल यह है इन कमियों के बाद भी नगर निगम की तरफ से सबंधित अस्पतालों को अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी ) कैसे मिल गया। भोपाल में कुल 349 निजी अस्पताल हैं। इसके अलावा 11 बड़े सरकारी अस्पताल हैं। इनकी जांच की जिम्मेदारी नगर निगम के फायर अमले को दी गई है। एक हफ्ते से शुरू हुर्ई जांच में अग्नि सुरक्षा के सभी मापदंडों पर अस्पताल को परखा जा रहा है। इसी जांच में सामने आया है कई अस्पताल बिना आपातकालीन द्वार के चल रहे हैं।
अस्पतालों की जांच में यह कमियां मिलीं
— वाटर हाइड्रेंट सिस्टम दिखावे के लिए लगे हैं। अलग से इसके लिए पानी का टैंक नहीं है। पानी की जितनी क्षमता होनी चाहिए उतनी नहीं है। मनीषा अस्पताल, मानोरिया अस्पताल में भी यह कमी मिल चुकी है।
— वाटर हाइड्रेंट सिस्टम का कनेक्शन जनरेटर सेट से नहीं है। आग लगने पर बिजली बंद हुई तो वाटर हाइड्रेंट भी काम नहीं करेंगे। फायर अधिकारियों की तरफ से ऐसी व्यवस्था करने की सलाह दी जा रही है कि बिजली जाने पर जनरेटर सेट से हाइड्रेंट सिस्टम जुड़ जाए, जिससे आग बुझाई जा सके
कर्मचारियों को यह तक पता नहीं कि अग्निशमन यंत्रों से आग कैसे बुझाई जाए।
— कुछ अस्पतालों में फायर अलार्म लगे हैं, लेकिन जब परीक्षण के लिए धुआं किया गया तो बजे ही नहीं।
अब अस्थायी एनओसी के बिना नहीं मिलेगी अस्पताल चलाने की अनुमति
जबलपुर की घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्स सचिव मो. सुलेमान ने सभी जिलों के सीएमएचओ को पत्र लिखकर कहा है कि बिना अस्थायी अनापत्ति प्रमाण पत्र के अस्पताल चलाने की अनुमति नहीं दी जाए। यह शर्त सरकारी और निजी सभी अस्पतालों के लिए है। बता दें कि अभी तक सिर्फ कागजों के आधार पर अस्पतालों को एक साल की प्रोवीजनल (प्राविधिक) एनओसी मिल जा रही थी। इसी आधार पर अस्पताल चलने लगते थे। अब पूरी व्यवस्था देखने के बाद टेंप्रेरी एनओसी दी जाएगी। इसके बाद भी मरीजों के इलाज की सुविधा संबंधित अस्पताल में शुरू हो सकेगी
अभी तक करीब 80 अस्पतालों की जांच की गई है। करीब 40 प्रतिशत अस्पतालों में आपातकालीन द्वार ही नहीं हैं। रैंप नहीं हैं। न ही कर्मचारियों को आग के बुझाने के उपकरण चलाने के लिए प्रशिक्षण दिया गया है।
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